प्रकाशितकोशों से अर्थ

शब्दसागर

अभाव ^१ संज्ञा पुं॰ [सं॰]

१. असत्ता । अनस्तित्व । नेस्ती । अविद्य- मानत । न होना ।

२. आधुनिक नैयायिकों के मत के अनुसार वैशेषिक शास्त्र में सातवाँ पदार्थ । विशेष—काणादकृत सूत्रग्रंथ में द्रव्य, गुण, कर्म, सामान्य, विशेष । और समवाय, ये छ पदार्थ ही अभाव' माने गए हैं । अभाव पाँच प्रकार का है, यथा (क) प्रागभाव=जो किसी क्रिया और गुण के पहले न हो; जैसे, घड़ा बनने के पहले न था । (ख) पध्वंसाभाव= जो एक बार होकर फिर न रहे; जैसे 'घड़ा बन कर टूट गया । '(ग) अन्योन्याभाव=एक पदार्थ का दूसरा पदार्थ न होना; जैसे, घोड़ा बैल नहीं है और बैल घोड़ा नहीं है । (घ)अत्यंताभाव= जो न कमी था, न है और न होगा; जैसे, आकाशकुसुम, बंध्या का पुत्र । और (च) संसर्गभाव=एक वस्तु के संबंध में दूसरे का अभाव; जैसे, घर में घोड़ा नहीं हैं ।

२. त्रुटि । टोटा । कमी । घाट । जैसे, राजा के घर में द्रव्य का कौन अभाव है । उ॰—अपने अभाव की जड़ता में वह रह न सकेगा कभी मग्न । —कामायनी, पृ १५१ ।

३. नाश । मृत्यु [को॰] । लोप । अंतरिक्ष । अंतर्धान [को॰] ।

अभाव ^२ वि॰ भावरहित । स्नेरहित । लोप । अंतरिक्ष । अंतर्धान (को॰) ।

अभाव ^३ पु संज्ञा पुं॰ [सं॰ अ=बुरा +भाव] कुभाव । दुभवि । विरोध । उ॰—हम तिनकौ बहु भाँति खिझाव । उनके कबुहुँ अभाव न आवा । —विश्राम (शब्द॰) ।