अबिचल पु वि॰ [सं॰ अबिचल] दे॰ 'अविचल' । उ॰—रघुबीर रुविर पयान प्रस्थिति जानि परम सुहावनी । जनु कमठ खर्पर सर्पराज सो लिखत प्रबिचल पावनी ।—मानस, ५ ।३५ ।