अबरक
प्रकाशितकोशों से अर्थ
शब्दसागर
अबरक संज्ञा पुं॰ [सं॰ अभ्रक]
१. एक धातु । अभ्रक । भोडल । भोड़र । भुखल । विशेष—यह खानों से निकलती है और बड़े बड़े ढोकों में तह पर तह जमी हुई पहाड़ों पर मिलती है । साफ करके निका- लने पर इसकी तह काँच की तरह निकलती है । अबरक के पत्तर कंदील आदि में लगते हैं तथा विलायत में भी भेजे जाते हैं । वहाँ ये काँच की टट्टी की जगह कीवाड़ के पल्लों में लगाने के काम आते हें । यह धातु आग से नहीं जलती और लचीली होती है । वैज्ञानिक यंत्रों में भी इसका प्रयोग होता है । यह दो रंग की होती है—सफेद और काली । भारतवर्ष में बंगाल, राजस्थान, मद्रास आदि की पहाड़ियों में मिलती है । वैद्य लोग इसके भस्म को वृष्य मानते है और औषधियों में इसका प्रयोग करते हैं । भस्म बनाने में काले रंग का अबरक अच्छा समझा जाता है । निश्चंद्र अर्थात् अभारहित हो जाने पर भस्म बनता है ।
२. एक प्रकार का पत्थर जो खान से निकलता है । विशेष—यह पत्थर बर्तन बनाने के काम आता है । यह बहुत चिकना होता है । इसकी बुकनी ची़जों को चमकाने के लिये पालिश या रौगन बनाने के काम में आतो है ।