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प्रकाशितकोशों से अर्थ

शब्दसागर

अनुप्रास संज्ञा पुं॰ [सं॰] वह शब्दालंकार जिसमें किसी पद में एक ही अक्षर बार बार आकर उस पद की अधिक शोभा का कारण होता है । वर्णवृत्ति । वर्णसाम्य । वर्णमैत्री । जैसे—काक कहहिं कलकंठ कठौरा ।— तुलसी (शब्द॰) । विशेष—इसके पाँच भेद हैं—छेकानुप्रास, वृत्यनुपास, श्रुत्यनुप्रास, अंत्यानुप्रास और लाटान प्रास ।