प्रकाशितकोशों से अर्थ

शब्दसागर

अनाहत ^१ वि॰ [सं॰]

१. जिसपर आघात न हुआ हो । अक्षुब्ध ।

२. अगिणत । जिसका गुणन न किया गया हो ।

अनाहत ^२ संज्ञा पुं॰

१. शब्दयोग में वह शब्द या नाद जो दोनों हाथों के अँगुठों से दोनों कानों की लवें बंद करके ध्यान करने से सुनाई देता है ।

२. हठयोग के अनुसार शरीर के भीतर के छह चक्रों में से एक । इसका स्थान हृदय; रंग लाल पीला मिश्रित और देवता रुद्र माने गए हैं । इसके दलों का संख्या १२ और अक्षर 'क' से 'ठ' तक हैं ।

३. नया वस्त्र ।

४. द्वितीय बार किसी वस्तु को उपनिधि या धरोहर में देना । दोबारा किसी चीज का अमानता में दिया जाना ।

अनाहत शब्द संज्ञा पुं॰ [सं॰]

१. एक भीतरी शब्द जिसे योगी सुनते हैं ।

२. ओम की ध्वनि [को॰] ।