प्रकाशितकोशों से अर्थ

शब्दसागर

अधर्म संज्ञा पुं॰ [सं॰] [वि॰ अधर्मा, अधप्रिष्ठ, अधर्मी] पाप । पातक । असद्वव्यबहार । अकर्तव्य कर्म अन्याय । धर्म के विरुद्घ कार्य । कुकर् दुराचार ।बुरा काम । विशेष—शरीर द्बार हिसा चोरी आदि कर्म, वचन द्बारा अनुत भाषण आदि और मन द्बार परदोंहदि । यह गौतम का मन है । कणाद के अनुसार वह कर्म जो अभ्युदय (लौकिक सुख) ओर नैश्रेयस (पारलौकिक सुख) की सिद्बि का विरोधी हो । जौमिनी के मतानुसार वेदवुरुद्ब कर्म । बोद्बशास्त्रनुसार वह दुष्ठ स्वमान जो निर्वाण का विरेधी ही ।

२. एक प्रजापति अथवा सुर्य का अनुचर [को॰] ।