प्रकाशितकोशों से अर्थ

शब्दसागर

अदेय वि॰ [सं॰]

१. न देने योग्य । जिसे न दे सकें । उ॰—सकुच बिहगाइ माँगु नृप मोही । मोरे नहिं अदेय कछु अदेय कछु तोही ।— मानस, १ ।१४९ ।

२. (वह पदार्थ) जिसे देने को कोई बाध्य न किया जा सके । विशेष—नारद के अनुसार अन्वाहित, याचितक, रोग में प्रतिजात, सामान्य पदार्थ, स्त्री, पुत्र, परिवार होने पर सवस्व तथा निक्षेप, ये आठ पदार्थ नहीं देने चाहिए । इनको प्रतिज्ञा कर चुकने पर भी न दे । ऐसा करने पर वह राज्यापराधी समझा जाएगा । (नारद स्मृ॰ ४ ।४-५) । दक्ष के मन से स्त्री की संपत्ति को भी अदेय समझना चाहिए । मनु ने लिखा है कि जो लोग अदेय को ग्रहण करते है, या दुसरे व्यक्ति को देते है, उनको चोर के सदृश ही समझना चाहिए । यही बात नारद ने भी पुष्ट की है (ना॰ स्मृ॰ ४-१२) । याज्ञवल्कय ने कहा है कि स्त्री पु्त्र को छोड़कर अन्य पदार्थों को परिवार की आज्ञा से दे सकता है । या॰ स्मृति २-१७५ । इसी के सदृश वशिष्ट का मत है कि इकलौते पुत्र को न कोई दे सकता है न ले सकता है (व॰ स्मृ॰ १५, ३-४) । वशिष्ठ को दे कात्यायन भी पुष्ट करता है । वह लिखता है कि स्त्री पुत्र पर मिलकियत शासन के मामले है, न कि दान के मामले में ।