प्रकाशितकोशों से अर्थ

शब्दसागर

अतर ^१ संज्ञा पुं॰ [अ॰ इत्र] निर्यास । पुष्पसार । भमके द्बारा खिचा हुआ फूलों की सुगंध का सार । उ॰—करि फुलेल कौ आचमन मीठी कहत सराहि । रे गंधी, मतिअंध तूँ अतर दिखावत काहि । —बिहारी र॰ दो॰ ८२ । विशेष—ताजे फुलों को पानी के साथ एक बंद देग आग पर रखते है जो नल के द्बारा उस भभके से मिला रहता है जिसमें पहले से चंदन का तेल, जिसे जमीन या मावा कहते हैं, रखा रहता है । फुलों से सुगंधित भाप उठकर उस चंदन के तेल पर टपककर इकट्ठा होती है ओर तेल (जमीन) ऊपर आ जाता है । इसी तेल को काछकर रख लेते है और अतर या इतर कहते है । जिस फूल के भाप से यह बनता है उसी का अतर कहलाता है । जैसे—गुलाब का अतर, मोतिया का अतर इत्यादि ।

अतर ^२पु संज्ञा पुं॰ [सं॰ अन्न्र, प्रा॰अत्र] दे॰ 'अस्त्र' उ॰—कनक पाट जनु बइठेउ राजा । सबइ सिंगार अतर लेइ साजा— पदुमा॰ पृ॰ ४६ ।