विश्लेषण

जिससे जीता न जा सके।

संधि

अ + जय = अजय

प्रकाशितकोशों से अर्थ

शब्दसागर

अजय ^१ संज्ञा पुं॰ [सं॰]

१. पराजय । हार । जय का अभाव ।

२. अग्नि (को॰) ।

३. विष्णु (को॰) ।

४. एक कोशकार का नाम (को॰) ।

५. छप्पय छंद के ७१ भेदों में से पहला जिसमें ७० गुरु और १२ लघु मिलाकर ८२ वर्ण और १५२ मात्राएँ हैं ।

अजय ^२ वि॰ न जीतने योग्य । जो जीता न जा सके । अजेय । उ॰—जीति को सकै अजय रघुराई । माया तें असि रची न जाई । —मानस, ६ ।१३ ।

अजय ^२ संज्ञा पुं॰ सुश्रुत में कथित एक विघघ्न घृत [को॰] ।