प्रकाशितकोशों से अर्थ

शब्दसागर

अज ^१ वि॰ [सं॰] जिसका जन्म न हो । जन्म के बंधन से रहित । अजन्मा । स्वयंभू । उ॰—ब्रह्मा जो व्यापज विरज अज अकल अनीह अभेद ।—मानस, १ । ५० ।

अज ^२ संज्ञा पुं॰

१. ब्रह्मा । उ॰—लगन बाचि अज सबहि सुनाई ।— मानस, १ । ९१ ।

२. विष्णु ।

३. शिव ।

४. ईश्वर (को॰) ।

५. कामदेव ।

६. चंद्रमा (को॰)

७. एक सूर्यवंशी राजा जो दशरथ के पिता थे । विशेष—वाल्मीकि रामायण में इन्हें नाभाग का पुत्र लिखा है पर रघुवंश आदि के अनुसार ये रघु के पुत्र थे ।

८. बकरा । उ॰—तदपि न तजत स्वान, अज, खर ज्यों फिरत विषय अनुरागे ।—तुलसी ग्रं॰, पु॰ ५१६ ।

९. भेँड़ा ।

१०.

अज ^३ पु क्रि॰ वि॰ [सं॰ अद्य; प्रा॰ अज्ज] अब । अभी तक । विशेष—इस शब्द को 'हूँ' के साथ देखा जाता है, स्वतंत्र रूप में नहीं; जैसे—(को) उठी कबीरा बिरहिनी अजहूँ ढढै खेह ।— कबीर (शब्द॰) । (ख) अजहूँ जागु अजाना होत आउ निसि भोर ।—जायसी (शब्द॰) । (ग) रे मन, अजहूँ क्यौं न सम्हारै ।—सूर॰ १ । ६३ । (घ) अजहूँ मानहूँ कहा हमारा ।— मानस, १ ।८० ।

अज ^४ प्रत्य॰ [फा॰ अज] से । उ॰—लिये खाँदे ऊपर अज जान होर दिल ।—दक्खिनी॰, पृ॰ ११४ ।

अज सरे नौ क्रि॰ वि॰ [फा॰ अज सरे नौ] लए सिरे से । नए ढंग से [को॰] ।

अज ^२ संज्ञा स्त्री॰ १बकरी ।

२. सांख्य मतानुसार प्रकृति या माया जो किसी के द्वारा उत्पन्न नहीं की गई और अनादि हैं ।

३. शक्ति । दुर्गा ।

४. भादो बदी एकादशी जो एक ब्रत का दिन है ।

अज पु ^२ संज्ञा पुं॰ [हिं॰] दे॰ 'अजय' ।