प्रकाशितकोशों से अर्थ

शब्दसागर

अछत ^१ पु क्रि॰ वि॰ [सं॰ *√आक्षी, प्रा॰ √अच्च] [क्रि॰ अ॰ 'अछना' का कृदंत रुप जिसका प्रयोग क्रि॰ वि॰ की तरह होता है ।]

१. रहते हुए । उपस्तिति में । विद्यमानाता में । संमुख । सामने । उ॰—(क) खसम अछत बहु पिपर जाय ।—कबीर (शब्द॰) । (ख) आपु अछत जुबराज पद रामहिं देउ नरेसु ।—मानस, २ ।१ । (ग) तिनहि अंछत तुम अपने आलस काहैं कंत रहत कृस गात ।—सूर॰, १० ।४२१५ ।

२. सिवाय । अतिरिक्त ।—लखन कहेउ मुनि सुजसु तुम्हारा । तुम्हहि अच्छ को बरनै पारा ।—मानस १ ।२७४ ।

अछत ^२पु क्रि॰ वि॰ [सं॰ अ=नहीं+अस्ति, प्रा॰ अचछइ=है] न रहते हुए । अनुपस्थित । उ॰—गनती गनिबे तैं रहे छतहूँ अछत समान ।—बिहारी र॰, दो॰ २७५ ।