अचूक
प्रकाशितकोशों से अर्थ
शब्दसागर
अचूक ^१ वि॰ [सं॰ अच्युत अथवा सं॰ अ=नहीं+प्रा॰ √चुक्क=चूकना]
१. जो न चुके । जो खाली न जाय । जो ठीक बैठे । जो अवश्य फल दिखावे । जो अपना निर्दिष्ट कार्य अवश्य करे । उ॰— बाँकी तेग कबीर की, अनी परै द्धै टूक । मारे बीर महाबली, ऐसी मूठि अचूक ।—कबीर (शब्द॰) ।
२. निर्श्रांत । जिसमें भूल न हो । ठीक । भ्रमरहित । निश्चत । पक्का । उ॰—'वह समझता है कि जिस बात को सब लोग निभ्राँत कहतै है वह अवश्य ही अचूक होगी ।'—(शब्द॰) ।
अचूक ^२ क्रि॰ वि॰ १ सफाई से । पटुता से । कौशल से । उ॰—मूँदे तहाँ एक अलबेली के अनोखे दृग सुदृग मिचावनी के ख्यालन हितै हितै । नैसुक नवाई ग्रौवा धन्य धनि दूसरी कोँ औचका अचूक मुख चूमत चितै चितै ।—पद्माकर ग्रं॰, पृ॰ ९५ ।
२. निश्चय । अवश्य । जरुर । उ॰—जहाँ मुख मुक, राम राम ही की कूक जहाँ सवै सुखधूप तहाँ है अचूक जानकी—हृदयराम (शब्द॰) ।