प्रकाशितकोशों से अर्थ

शब्दसागर

अगवान ^१पु संज्ञा पुं॰ [सं॰ अग्र + हिं॰ वान (आवना आदि के मूल में स्थित द्बिधातु का अंश)]

१. अगवानी या अभ्यर्थना करनेवाला व्यक्ति । आगे से जाकर लेनेवाला व्यक्ति ।

२. विवाह में कन्यापक्ष के वे लोग जो बरात का आगे बढ़कर स्वागत करते है । उ॰—(क) अगवानन्ह जब दीखि बराता । उर आनंद पुलक भर गाता । —मानस, १ । ३०५ । (ख) सहित बरात राउ सनमाना । आयेसु माँगि फिरे अगवाना । — मानस, १ । ३०९ ।

अगवान ^२ संज्ञा स्त्री॰ [सं॰ अग्र + हिं॰ वान]

१. आगे से जाकर लेना । अगवानी । अर्भ्थना । उ॰—महाराज जयसिंह जय मे सिंह के समान, नीरयान समय जासु गंग लीनी अगवान । —रघुराज (शब्द॰) ।

२. विवाह में कन्यापक्ष के लोगों का बरात की अभ्यर्थना के लिये जाना । उ॰—लै अगवान बरातहि आए । दिए सबहिं जनवास सुहाए । —मानस, १ । ६९ । क्रि॰ प्र॰— करना । —लेना । —होना ।