अगर शब्द किसी एक वस्तु की दूसरी वस्तु पर निर्भरता दर्शाता है

पर्यायवाची

अनुवाद

प्रकाशितकोशों से अर्थ

शब्दसागर

अगर ^१ संज्ञा पुं॰ [सं॰ अगरु] एक पेड़ जिसकी लकड़ी सुगंधित होती है । ऊद । उ॰— चंदन अगर सुगंध और घृत विधि करि चिता बनायो ।— सूर॰, ९ ।५० । विशेष—यह पेड़ भूटान, आसाम, पूर्वी बंगाल, खसिया और मर्तबान की पहाड़ियों में होता हैं । इसकी ऊँचाई ६० से १०० फुट और घेरा ५ से८ फुट तक होता हैं । जब यह २० वर्ष का होता है तब इसकी लकड़ी अगर के लिय काटी जाती है । पर कोई कोई कहते हैं कि इसकी लकड़ी ५०-६० वर्ष के पहले नहीं पकती । पहले तो इसकी लकड़ी बहुत साधारण पीले रंग की और गंधरहित होती हैं, पर कुछ दिनों में धड़ और साखाओं में जगह जगह एक प्रकार का रस आ जाता हैं जिसके कारण उन ,स्थानों की लकड़ियाँ भारी हो जाती हैं । इन स्थानों से लकड़ियाँ काट ली जाती हैं और अगर के नाम से बिकती हैं । यह रस जितना अधिक होता है उतनी ही लकड़ी उत्तम और भारी होती है । पर ऊपर से देखने से यह नहीं जाना जा सकता कि किस पेड़ में लकड़ी अच्छी निकलेगी । बिना सारा पेड़ काटे इसका पता नहीं लग सकता । एक अच्छे पेड़ में (३००) तक का अगर निकल सकता है । पेड़ का हल्का भाग जिसमें यह रस या गोंद कम होता है, 'दूम' कहलता है और सस्ता अर्थात् (१). (२) सेर बिकता हैं, पर असली काली काली लकड़ी, जो गोंद अधिक होने के कारण भारी होती है, 'गरकी' कहलाती है और (१६) या (२०) सेर बिकती है । यह पानी में डूब जाती है । लकड़ी का बुरादा धूप, दसांग आदि में पड़ता है । बंबई में जलाने के लिये इसकी अगरबत्ती बहुत बनती है । सिलहट में अगर का इत्र बहुत बनता है । चोवा नाम का सुगंधित लेप इसी से बनता है ।

अगर ^२ संज्ञा पुं॰ [सं॰ अक्षर] अक्षर । वर्ण । हर्फ (डिं) । उ॰— उठारे सहज जोधार असुंसरा लड़े हरि चापड़े मार लीधा उचार दध अगर रो ।—रघु॰ रू॰, पृ॰ १३१ ।

अगर ^३ संज्ञा पुं॰ [सं॰ आगार डिं॰ अग्गर] आगार । गृह । उ॰— जे सँसार अँधियार अगर में भए मगनबर ।—का॰ कौमुदी १, ।

अगर ^४ अव्य [फ़ा॰] यदि । जो । उ॰— उसे हमने बहुत ढूँढ़ा न पाया । अगर पाया तो खोज अपना न पाया ।—शेर॰, भा॰ १, पृ॰ ४१२ । मुहा॰—अगर मगर करना=(१) हुज्जत करना । तर्क करना । (२) आगा पीछा करना ।

अगर ^५ पु क्रि॰ वि॰ [सं॰ अग्र, प्रा॰ अग्गर] आगे । जैसे 'अगरज' में 'अगर' ।

अगर बगर पु † क्रि॰ वि॰ [हिं॰] दे॰ 'अगल बगल' ।