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प्रकाशितकोशों से अर्थ

शब्दसागर

अकह ^१ वि॰ [सं॰ अकथ;प्रा॰ अकह] न कहमें योग्य । जो कही न जा सके । अकथनीय । अनिर्वचनीय । अवर्णनीय । उ॰— नहीं ब्रह्म, नहिं जीव न माया ज्यों का त्यों वह जाना । मन, बुधि, गुन, इंद्रिय, नहिं जाना अलख अकह निर्वाना ।—कबीर (शब्द॰) । यौ॰—अकह कहानी = अनिर्वचनीय कथा । उ॰—निज दल जागौ ज्योति पर दल दूनी होती, अचला चलति यह अकह कहानी है । पूरण प्रताप दीप अंजन की राजै रेख राजन श्री रामचंद्र पानिन कृपानी है ।—केशव (शब्द॰) ।

अकह ^२ पु वि॰ [सं॰ अकत्थ्य] मुँह पर न लाने योग्य । बुरी । अनुचित । उ॰—शील सुधा वसुधा लहिकै अकहै कहिकै यह जीभ बिगारिए ।—देव (शब्द॰) ।