अंड
प्रकाशितकोशों से अर्थ
शब्दसागर
अंड संज्ञा पुं॰ [सं॰ अण्ड]
१. अंडा । उ॰—अललपच्छ का अंड ज्यों उलटी चले अस्मान ।—रत्न॰, पृ॰ ६१ ।
२. 'अंडकोश' । फोता ।
२. ब्रह्मांड । लोकपिंड । लोकमंडल । विश्व । उ॰— जिअन मरन फल दसरथ पावा । अंड अनेक अमल जस छाव ।—मानस, २ ।१५६ ।
४. वीर्य । शुक्र ।
५. कस्तूरी का नाफा । मृगनाभि । नाफा ।
६. पंच आवरण । दे॰, 'कोश' ।
७. क मदव । उ॰—अति प्रचंड यह अंडमहाभट जहि सबै जग जानत । सो मव्हीन दीन ह्वौ बपुरो कोपि धनुष शर तानत ।—सूर (शब्द॰) ।
८. मकानों की छाजन के ऊपर के गोलकलश जो शोभा के लिये बनाए जाते हैं । उ॰—(क) अंड टूक जाके भस्मती सौ ऐसा राजा त्रिभुवनपति ।— दक्खिनी, पृ॰ ३० । (ख) वटेबर षग्ग क्मद्ध निसार । तुटै बर देवल अंड अधार ।—पृ॰ रा॰, २४ ।२३९ ।
१०. शिव का एक नाम (को॰) ।