अंगुर

संज्ञा पुल्लिंग

  1. छोटे आकार का एक रसेदार मीटा फल।
  2. मांस के छोटे छोटे लाल दाने जो घाव भरते समय दिखाई पड़ते हैं
  3. अंगुल
  4. अंकुर । अँखुआ

प्रयोग

  • अंगुर द्धै घटि होत सबनि सौं पुनि पुनि और मँगायौ । - सूरदास (सूरसागर १०, ३४२)

मुहावरे/लोकोक्तियाँ

  1. अंगुर खट्टे होना = प्रयत्न से हासिल न होने पर अच्छी वस्तु को बुरा कहना।
  2. अंगुर आना = घाव के ऊपर चमड़े की पतली झिल्ली पड़ना। घाव पुरना । घाव भरना।
  3. अंगुर तड़कना = भरते हुए घाव पर बंधी हुई मांस की झिल्ली का फट जाना।
  4. अंगुर फटना = भरते हुए घाव का फिर से हरा हो जाना।
  5. अंगुर बँधना = घाव के ऊपर मांस की नई झिल्ली चढ़ना।
  6. अंगुर- भरना = घाव भरना।

संबंधित शब्द

  • अंगुरि - स्त्रीलिंग

वर्णक्रम सहचर

अनुवाद

प्रकाशितकोशों से अर्थ

शब्दसागर

अंगुर पु संज्ञा पुं॰ दे॰ 'अंगुल'—१ । उ॰—अंगुर द्धै घटि होत सबनि सौं पुनि पुनि और मँगायौ ।—सुर, १० ।३४२ ।

अंगुर ^१ संज्ञा पुं॰ [फा॰] एक लता ओर उसके फल का नाम । द्राक्षा । दाख । विशेष—यह भारत के उत्तरपश्चिम और पंजाब तथा कश्मीर आदि प्रदेशों में बहुत लगाया जाता है । हिमालय के पश्चिमीय भागों में यह आपसे आप भी होता है । उत्तर प्रदेश के कुमाऊँ, कनावर और देहरादुन तथा आंध्र और महाराष्ट्र प्रदेश के अहमदनगर, औरंगाबाद, पुना और नासिस आदि स्थानों में भी इसकी उपज होती है । बंगाल में पानी अधिक बरसने के कारण इसकी बेल वैसी नहीं बढ़ सकती । बिहार प्रदेश में तिरहुत और दानापुर में इसकी कुछ टट्टियाँ तैयार की जाती है । अंगुर की बेल होती है जो टट्टियों पर फैलती है । इसकी पत्तियाँ कुम्हड़े वा नेनुए की पत्तियों से मिलती जुलती होती हैं । इसके फल हरे और बैगनी रंग के तथा छोटे, बड़े, गोल और लबे केई आकार के होते है । कोई नीम के फल की तरह लंबोतरे और कोई मकोय की तरह गोल होते हैं और गुच्छो में लगते है । अंगुर की मिठ्स तो प्रसिद्ध ही है । भारतवासी इसे 'द्राक्षा' और 'मृद्धीका' के नाम से जानते है । चरक और सुश्रुत मे इसका उल्लेख है । पर भारतवर्ष में इसकी खंती कम होती थी । फल प्रायः बाहर से ही मँगाए जाते थे । मुसलमान बादशाहों के समय अगुर की ओर अधिक ध्यान दिया गया । आजकल हिंदुस्तान में सबसे अधिक अंगुर काश्मीर में होती है जहाँ ये क्वार के महीने में पक्ते हैं । वहाँ इनकी शराब बनती है और सिरका भी पड़ता है । महाराष्ट्र देश में जो अंगुर लगाए जाते है उनके कई भेद है, जैसे— आबी, फकीरी, हबशी, गोलकली साहेबी इत्यादि । अफगानिस्तान, बिलुचिस्तान और सिंध में अंगुर बहुत अधिक और कई प्रकार के होते है—जैसे, हेटा, किशमिशी, कमलक, हुसैनी इत्यादि । किशमिशी में बीज नहीं होता । कंधारवाले हेटा अंगुर को चुना और सज्जीखार के साथ गरम पानी में डुबाकर 'आबजोश' और किशमिशी को धुप में सुखाकर किशमिश बनाते हैं । मुनक्का, जो दवा के काम में आता है, सुखाया हुआ अंगुर है । यह दस्तावर है और ज्वर की प्यास को कम करता है । खाँसी के लिये बी अच्छा है । 'द्राक्षारिष्ट' आदि कई आयु—

अंगुर ^२ संज्ञा पुं॰ मांस के छोटे छोटे लाल दाने जो घाव भरते समय दिखाई पड़ते हैं । दे॰ 'अंकुर' ^२ । मुहा॰—अंगुर आना = घाव के ऊपर चमड़े की पतली झिल्ली पड़ना । घाव पुरना । घाव भरना । अंगुर तड़कना = भरते हुए घाव पर बंधी हुई मांस की झिल्ली का फट जाना । अंगुर फटना = दे॰ 'अंगुर तड़कना' । अंगुर बँधना = घाव के ऊपर मांस की नई झिल्ली चढ़ना । घाव भरना । अंगुर- भरना = दे॰ 'अंगुर बँधना' ।

अंगुर ^३ संज्ञा पुं॰ [सं॰ अंकुर] अंकुर । अँखुआ ।