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प्रकाशितकोशों से अर्थ

शब्दसागर

अँधेरा ^१ संज्ञा पुं॰ [सं॰ अन्धकार, प्रा॰ अंधयार]

१. अंधकार । तम । प्रकाश का अभाव । उजाले का विलोम । उ॰—मीन, नाश, विध्वंस, अँधेरा शून्य बना जो प्रकट अभाव ।—कामायानी, पृ॰ १८ ।

२. धूँधलापन । धुंध । उ॰ —उसकी आखों में अँधेरा छाया रहता है (शब्द॰) । क्रि॰ प्र॰—करना । —छाना । —दौड़ना । —पड़ना । —फैलना ।—होना । मुहा॰—अँधेरा छोड़ना = प्रकाश के सामने से हट जाना । उजाला छोड़ना ।

३. छाया परछाईं । उ॰— चिराग के सामने से हट जाओ, तुम्हारा अँधेरा पड़ता है (सब्द॰) ।

४. उदासी । शोक । उ॰— उसके मरते ही समाज में अँधेरा छा गया ( शब्द॰) ।

अँधेरा ^२ वि॰ अंधकारमय । प्रकाशरहित । तमाच्छादित । यौ॰—अँधेरा कुप = कूएँ की तरह अँधेरा । बहुत गहरा अँधेरा । अँधेरा पाख, अँधेरा पक्ष = कृष्ण पक्ष । बादी । अँधेरे उजाले, अँधेरे उजेले = अबेर सबेर । समय कुसमय । वक्त, बेवक्त । उ॰— अच्छा जमादार अँधेरे उजाले समझ लूँगा । — फिसाना॰, पृ॰४८९ । अँधेरे मुहँ, मुहँ अँधेरे = सूर्योदय के पहले जब मनुष्य एक दूसरे का मुँह अच्छी तरह न देख सकते हों । बडे़ तड़के । बड़े सबेरे । मुहा॰— अँधेरे घर का उजाला = (१) अत्यंत कांतिमान । अत्यंत सुंदर । (२) शुभ लक्षणवाला । सुलक्षण । कुलदीपक । वंश की मर्यादा बढ़ानेवाला ।(३) इकलौता बेटा । अँधेरे घर का चिराग या दिया = दे॰ 'अँधेरे घर का उजाला' ।

अँधेरा उजाला संज्ञा पुं॰ [हिं॰ अँधेरा+उजाला] एक खिलौना जो श्वेत और रंगीन कागजों से बनता है । रात दिन का खिलौना । विशेष—कागज को एक विशेष प्रकार से कई तहों में लपेटकर बनाया हुआ एक प्रकार का खिलौना जिसके भीतरी दो भाग सादे और दो भाग रंगीन होते हैं और जो हाथ की चारों उँगलियों कि सहायत से खोला और मूँदा जाता है । इससे कभी तो उसका सादा अंस दिखाई पड़ता हैं और कभी रंगीन ।

अँधेरा गुप संज्ञा पुं॰ [हिं॰ अँधेरा+कूप] इतना अधिक अंधकार कि कुछ दिखाई न दे । घोर अंधकार, जैसे—इस कोठरी में तो बिलकुल अँधेरा गुप है (शब्द॰) ।