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प्रकाशितकोशों से अर्थ

शब्दसागर

अँतरा ^१ † संज्ञा पुं॰ [सं॰ अन्तरा]

१. अंझा । नागा । अंतर । बीच । क्रि॰ प्र॰—करना ।—डालना ।—पड़ना ।

२. वह ज्वर जो एक दिन नागा देकर आता है । क्रि॰ प्र॰- उ॰—आना उसे अँतरा आता है ।

३. कोना ।

अँतरा ^२ † वि॰ एक वीच में छोड़कर दूसरा । विशेष—विशेषण में इसका प्रयोग साधु भाषा में केवल 'ज्वर' शब्द के साथ और प्रांतीय भाषाऔं में कालसूचक शब्दो के साथ होता है; जैसे, अँतरा ज्वर । अँतरे दिन । यौ॰—अँतरे खोतरे=बीच में नागा करते हुए । दूसरे तीसरे । उ॰—अँतरे खोतरै डंडै करै, तालु नहाय औस माँ परै । दैव न मारे अपुव [न] इ मरै ।—घाघ॰, पृ॰ ४७ ।