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प्रकाशितकोशों से अर्थ

शब्दसागर

अँतड़ी संज्ञा स्त्री॰ [प्रा॰ अप॰ अत्रड़ी] आँत । नली । दे॰ आँत । मुहा॰—अँतड़ी टटोलना=

१. भूख को समझना । उ॰—जोरू टटोले गटढ़ी, माँ टट ले अँतड़ी (कहाबत) । २ रोग की पह- चान के लिये पेट को दबाकर देखना । अँतड़ी जलना=पेट जलना । बहुत भूख लगाना । अँतड़ी गले में पड़ना=किसी आपत्ति में फँसना । संकटग्रस्त होना । अँतड़ियों का बल खोलना=बहुत दिन के बाद भोजन मिलने पर खूब पेट भर खाना । अँतड़ियों को मसोसकर रह जाना=भूख की कठिन तकलीफ सहना । अँतड़ियों में आग लगना=दे॰ 'अँतड़ी जलना' । अँतड़ीयों में बल पड़ना=अँतड़ियों का ऐठना या दुखना । पेट में दर्द होना । उ॰—हँसते हँसते अँतड़ियों में बल पड़ गए । (शब्द॰) ।