अँगडा़ई
प्रकाशितकोशों से अर्थ
शब्दसागर
अँगड़ाई संज्ञा स्त्री॰ [ हिं॰ अँगड़ाना + ई ( प्रत्य॰) ] [ क्रि॰ अँगड़ाना ] आलस से जम्हाई के साथ अंगों को फैलाना, मरोड़ना या तानना । देह के बंद या जोड़ के भारीपन को हटाने के लिये अवययों को पसारना या तानना । शरीर के लगातार एक स्थिति में रहने के कारण जोड़ों या बंदों के भर जाने पर अवयवों को फैलाना । अँगड़ाने की क्रिया या भाव । देह टूटना । टूटना । उ॰— जलधि लहरियों की अँगड़ाई बार बार जाती सोने ।—कामायनी, पृ॰ २३ । विशेष—सोकर उठने पर या ज्वर आने से कुछ पहले यह प्राय: आती है । क्रि॰ प्र॰—आना ।—लेना । उ॰— खुदा के वास्ते तनकर न ले तू अँगड़ाई । कि बंद बंद बुते बेहिजाब चटकेगा (फै॰) । मुहा॰—अँगड़ाई तोड़ना = (१) आलस्य में बैठे रहना । कुछ काम न करना । (२) किसी के कंधे पर हाथ रखकर अपने शरीर का भार उसपर देना ।