प्रकाशितकोशों से अर्थ

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शब्दसागर

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विप्रतिपत्ति संज्ञा स्त्री॰ [सं॰]

१. विरोध । मेल न बैठना । जैसे,— मनुष्यों के स्वार्थ की विप्रतिपत्ति । (मिताक्षरा) ।

२. ऐसा कथन जिसके अंदर दो ऐसी बातें हों जो एक के साथ न हो सकती हों । परस्पर विरुद्ध वाक्य । (न्याय) । विशेष—जैसे काई कहे कि वहाँ अग्नि है और नहीं है तो उसका यह कथन विप्रतिपत्ति का उदाहरण होगा ।

३. किसी बात का बिलकुल उलटा निरूपण । किसी बात में ऐसा नतीजा । निकालना जो ठीक न हो । विपरीत प्रतिपत्ति । असिद्धि । उ॰—उनमें विप्रतिपत्ति न हो; उनमें यथार्थता हो ।—पा॰ सा॰ सिं॰, पृ॰ १३२ ।

४. प्रसिद्धि का अभाव । अख्याति ।

५. कुख्याति । बदनामी ।

६. गलत धारणा । भ्रांत धारणा (को॰) ।

७. पारस्परिक संबंध । परिचय । जान पह- चान (को॰) ।

८. हैरानी । घबड़ाहट (को॰) ।

९. चातुर्य । विद- ग्धता (को॰) ।

१०. किसी कृत्य या पूजन की वह विकृति जो प्रतिनिधि द्रव्य का नाम लेने से होती है । विशेष—किसी कृत्य या पूजन में जो द्रव्य विहित है, उसके अभाव में यदि कोई दूसरा द्रव्य प्रतिनिधि रूप में रखा जाय, तो समर्पण वाक्य में प्रतिनिधि द्रव्य का नाम न लेकर जिसके अभाव में वह द्रव्य रखा गया हो, उसी का नाम कहना चाहिए । प्रतिनिधि द्र्वय का नाम लेने से पूजा विकृत हो जाती है ।