प्रकाशितकोशों से अर्थ

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शब्दसागर

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मजा संज्ञा पुं॰ [फा॰ मज़ह्]

१. स्वाद । लज्जत । जैसे,—अब आमों में कुछ मजा नहीं रह गया । मुहा॰—मजा चखाना=किसी को उसके किए हुए अपराध का दंड देना । बदला लेना । किसी चीज का मजा पड़ना= चसका लगना । आदत पड़ना । मजे पर आना=अपनी सबसे अच्छी दशा में आना । जोबन पर आना ।

२. आनंद । सुख । जैसे,—आपको तो लड़ाई झगड़े में ही मजा मिलता है । मुहा॰—मजा उड़ाना या लूटना=आनंद लेना । सुख भोगना । उ॰—सर को पटका है कभू, सीना कभू कूठा है । रात हम हिज्र की दौलत से मजा लूटा है ।—कविता कौ॰, भा॰ ४, पृ॰ ३८ । मजा किरकिरा करना या होना=आनंद में विघ्न पड़ना । रंग में भंग होना । उ॰—मजा किरकिरा न कीजिए ।—प्रेमघन॰, भा॰ २, पृ॰ ११० । मजे का= अच्छा । बढ़िया । उत्तम । मजे में या मजे से=आनंदपूर्वक । बहुत अच्छी तरह । सुख से ।

३. दिल्लगी । हँसी । मजाक । जैसे,—मजा तो तब हो, जब वह आज भी न आवे । मुहा॰—मजा आ जाना=परिहास का साधन प्रस्तुत होना । दिल्लगी का सामान होना । जैसे,—अगर आप यहाँ गिरें तो मजा आ जाय । मजा चखना=परिणाम भुगतना । करनी का फल भुगतना । मजा देखना या लेना=दिल्लगी या तमाशा देखना । जैसे,—आप चुपचाप बैठे बैठे मजा कीजिए ।