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प्रकाशितकोशों से अर्थ सम्पादन

शब्दसागर सम्पादन

भोग संज्ञा पुं॰ [सं॰]

१. सुख या दुःख आदि का अनुभव करना या अपने शरीर पर सहना ।

२. सुख । विलास ।

३. दुःख । कष्ट ।

४. स्त्रीसंभोग । विषय ।

५. साँप का फन ।

६. साँप ।

७. धन । संपत्ति ।

८. गृह । घर ।

९. पालन ।

१०. भक्षण । आहार करना ।

११. देह ।

१२. मान । परिमाण ।

१३. पाप या पुण्य का वह फल जो सहन किया या भोगा जाता है । प्रारब्ध ।

१४. पुर ।

१५. एक प्रकार का सैनिक व्युह ।

१६. फल । अर्थ । उ॰— क्योंकि गुण वे कहाते हैं जिनसे कर्मकांड़ादि में उपकार लेना होता है । परंतु सर्वत्र कर्मकांड़ में भी दृष्ट भोग की प्राप्ति के लिये परमेश्वर का त्याग नहीं होता ।— दयानंद (शब्द॰) ।

१७. मानुष प्रमाण के तीन भेदों में से एक । भुक्ति । (कब्जा) ।

१८. देवता आदि के आगे रखे जानेवाले खाद्या पदार्थ । नैवेद्य । उ॰— गयो लै महल माँफ टहल लगए लोग होन भोग जिय शंका तनु छोजिए ।—नामा (शब्द॰) । क्रि॰ प्र॰—लगना ।—लगाना ।

१९. भाड़ा । किराया ।

२०. सूर्य आदि ग्रहों के राशियों में रहने का समय ।

२१. आय । आमदनी (को॰)

२२. वेश्या की भोग के निमित्त प्रदत्त शुल्क । वेश्या का शुल्क (को॰) ।

२३. भूमि या संपत्ति का व्यवहार ।