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प्रकाशितकोशों से अर्थ सम्पादन

शब्दसागर सम्पादन

तंत ^१पु † संज्ञा पुं॰ [सं॰ तन्तु] 'तन्तु' । उ॰— किंगरी हाथ गहै बैरागी । पाँच तंत घुनि यह एक लागी ।— जासयी (शब्द॰) ।

तंत ^२ संज्ञा स्त्री॰ [हिं॰ तुरंत] किसी बात के जल्दी । आतुरता । उतावली । उ॰— ध्यान की मूरति आँखि ते आगे जानि परत रघुनाथ ऐसे कहति हैं तंत सों ।— रघुनाथ (शब्द॰) । क्रि॰ प्र॰— लगाना ।

तंत ^३ संज्ञा पुं॰ [सं॰ तत्व] दे॰ 'तत्व' । उ॰— योगिहि कोह न चाही तब न मोहि रिस लाग । योग तंग ज्यों पानी काहि करै तेहि आग ।— जायसी (शब्द॰) ।

तंत ^४ संज्ञा पुं॰ [सं॰ तन्त्र]

१. वह बाज जिसमें बजाने के लिये तार लगे हों । जैसे,— सितार, बीन, सारंगी । उ॰— (क) नटिन ी डोमिनि ढोलिनी सहनाईनि भेरिकार । निरतन तंत विनोद सउँ बिहँसत खेलति नारि ।— जायसी (शब्द॰) । (ख) तंतन की झनकार बजन झीनी झीनी ।— संतवाणी॰, पृ॰ २३ ।

२. क्रिया । उ॰—जनु उन योग तंत अब खेला ।—जायसी (शब्द॰) ।

३. तंत्रशास्त्र । उ॰— कइ जीउ तंत मंत सउं हेरा । गएउ हेराय सो वहु भा मेरा ।— जायसी (शब्द॰)

४. इच्छा । प्रबल कामना । उ॰— (क) दिसि परजंत अनंत ख्यात जय बिजय तंत जिय ।— गोपाल (शब्द॰) । बुद्धिमंत दुतिमंत तंत जय मय निरधारत ।—गोपाल (शब्द॰) ।

५. वश । अधीनता । उ॰— त्यों पदमाकर आइगो कंत इकंत जबैं निज तंत मैं । पद्माकर (शब्द॰) । विशेष— दे॰ 'तंत्र' ।

तंत ^५ वि॰ जो तौल में ठीक हो । जो वजन में बराबर हो ।