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प्रकाशितकोशों से अर्थ सम्पादन

शब्दसागर सम्पादन

ढरकी संज्ञा स्त्री॰ [हिं॰ ढरकना] जुलाहों का एक औजार जिससे वे लोग बाने का सूत फेंकते हैं । उ॰— सबद ढरकी चलै नाहिं छीनै ।— पलटू॰, पृ॰ २५ । विशेष— ढरकी की आकृत्ति करताल की सी होती है और यह भीतर से पोली रहती है । खाली स्थान में एक काँटे पर लपेटा हुआ सूत रक्खा रहता है । जब ढरकी को इधर से उधर फेंकते हैं तब उसमें से सूत खुलकर बाने में भरता जाता है । इसे भरनी भी कहते हैं । यौ॰— जुलाहे की ढरकी = अस्थिरमति आदमी । कभी इधर कभी उधर होनेवाला व्यक्ति ।