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संज्ञा

पु.

  1. आकाश्स्थ पिंड

अनुवाद

प्रकाशितकोशों से अर्थ

शब्दसागर

ग्रह ^१ संज्ञा पुं॰ [सं॰]

१. वे तारे जिनकी गति, उदय और अस्त काल आदि का पता ज्योतिषियों ने लगा दिया था । विशेष—(क) प्राचिन काल के ज्योतिषियों में इन ग्रहों की संख्या के संबध में कुछ मतभेद था । वराहमिहिर ने केवल सात ग्रह माने हैं; यथा—सूर्य, चंद्र, मंगल, बुध, बृहस्पति, शुक्र और शनि । फलित ज्योतिष में इन सात ग्रहों के अतिरिक्त राहु और केतु नामक दो और ग्रह माने जाते हैं और अनेक मांगलिक अवसरों पर इन ९ ग्रहों का विधिवत् पूजन होता है । एक विद्वान् के मत से ग्रहों की संख्या दस है; पर यह कहीं मान्य नहीं है । अधिकांश लोग फलित ज्योतिष के अनुसार ग्रहों की संख्या नौ ही मानते हैं और इसी लिये ग्रह नौ की संख्या का बोधक भी है । फलित ज्योतिष में प्रत्येक ग्रह को कुछ विशिष्ट देशों, जातियों, जीवों और पदार्थों का स्वामी माना है और उनका वर्णविभाग किया गया है । उनमें गुरु और शुक्र को ब्राम्हण, मंगल और रवि को क्षत्रिय, बुध और चंद्रमा को वैश्य और शनि, राहु तथा केतु को शूद्र कहा गया है । मंगल और सूर्य का रंग लाल, चंद्रमा और शुक्र का रंग सफेद गुरु और बुध का रंग पीला और शनि, राहु और केतु का रंग काला बतलाया गया है । इसके अतिरिक्त फलित ज्योतिष में जो कुंडली बनाई जाती है, उसमें प्रत्येक ग्रह की दूसरे ग्रहों पर एक विशेष रूप से 'दृष्टि' भी होती है । शुभ ग्रह की दृष्टि का फल शुभ और अशुभ ग्रह की दृष्टि का फल अशुभ होता है । यह दृष्टि चार प्रकार की होती है ।—पूर्ण, त्रिपाद, अर्द्ध औऱ एकपाद । पूर्ण दृष्टि का फल पूर्ण, त्रिपाद का तीन चतुर्थांश, अर्द्ध का आधा और एकपाद का एक चतुर्थांश होता है । इस दृष्टि की संबंध में फलित ज्योतिष के ग्रंथो में कहा गया है कि प्रत्येक ग्रह अपने स्थान से तीसरे और दसवें घरो को एकपाद, पाँचवें और नवें घरों के ग्रहों का अर्द्ध, चौथे और आठवें घरो के ग्रहों को त्रिपाद औ र सातवें घर के ग्रहों को पूर्ण दृष्टि से देखता है । (ख) 'ग्रह' शब्द में पति या पतिवाची कोई दूसरा शब्द जोड़ देने से उसका अर्थ 'सूर्य' हो जाता है ।

२. आकाशमंडल में वह तारा जो अपने सौर जगत् में सूर्य की परिक्रमा करे । एक निश्चित कक्षा पर किसी सूर्य की परिक्रमा करनेवाला तारा । विशेष—हमारे सौर जगत् में सूर्य के क्रमानुसार अंतर पर बुध, शुक्र, पृथ्वी, मंगल, बृहस्पति, शनि, युरेनस और नेपच्यून ये आठ बड़े या प्रधान ग्रह हैं । अब एक नए ग्रह का पता चला है जिसे प्लेटो (कुबेर ) कहते हैं । इनके अतिरिक्त, मंगल और बृहस्पति के मध्य में बहुत से छोटे छोटे ग्रह हैं जिनमें से अबतक ४६० से अधिक ग्रहों का होना प्रमाणित हो चुका हैं । ये सब प्रायः एक ही समतल पर हैं और युरेनस तथा नेपच्यून के अतिरिक्त शेष सब ग्रह अपनी कक्षा पर सूर्य की परिक्रमा करते हैं । नेपच्यून और युरेनस का मार्ग कुछ भिन्न है । इन ग्रहों की गति भी अलग अलग है । किसी किसी बड़े ग्रह के साथ उपग्रह भी हैं जो उसी समतल पर अपनी कक्षा में अपनी ग्रह की परिक्रमा करते हैं । जैसे,—हमारी इस पृथिवी के साथ चंद्रमा । इसी प्रकार नेपच्यून के साथ एक, मंगल के साथ दो, युरेनस और बृहस्पति के साथ चार चार और शनी के साथ आठ उपग्रह या चंद्रमा हैं । इनमें से कुछ उपग्रहों का मार्ग और उनकी गति भी साधारण से भिन्न है । प्रत्येक ग्रह सूर्य से कुछ निश्चित अंतर पर है । साधारणतः स्थूल रूप से, सूर्य के ग्रहों का आपोक्षिक अंतर जानने का एक बहुत सरल उपाय यह है —॰, ३, ६, १२, २४, ४८, ९६, १९२ इनमें से प्रत्येक संख्या में चार जोड़ दें तो वही संख्या आपेक्षिक अंतर सूचित करनेवाली होगी— ४ ७ १० १६ २८ ५२ १०० १९६ बुध शुक्र पृथ्वी मंगल ॰ बृहस्पति शनि युरेनस अर्थात् यदि सूर्य और बुध का अंतर ४ मान लिया जाय, तो सूर्य से शुक्र का अंतर, लगभग ७, पृथ्वी का १०, मंगल का १६ और शेष ग्रहों का भी इसी प्रकार होगा । प्रत्येक ग्रह का सूर्य से ठीक अंतर, ब्यास और परिक्रमाकाल नीचे लिखे कोष्ठक से विदित होगा ।

३. नौ की संख्या ।

४. ग्रहण करना । लेना ।

५. अनुग्रह । कृपा ।

६. चंद्रमा या सूर्य का ग्रहण ।

७. वह पात्र जिससे यज्ञ में देवताओं को हविष्य दिया जाता है ।

८. राहु ।

९. स्कंद, शकुनी आदि रोग जो बहुत ही छोटे बालकों को हो जाते हैं और जिन्हें लोग भूत प्रेत आदि का उपद्रव समझते हैं । बालग्रह ।

ग्रह ^२ † वि॰ बुरी तरह तंग करनेवाला । दिक करनेवाला ।

ग्रह पु ^३ संज्ञा पुं॰ [सं॰ गृह] दे॰ 'गृह' । उ॰—ड़ारौ ड़र गुरुजनन कौ कहुँ इकंत पाइ । अति रुचि दोउन उर बढ़ी अधरन अधर मिलाइ ।—सं॰ सप्तक, पृ॰ ३७६ ।

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