प्रकाशितकोशों से अर्थ

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शब्दसागर

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कच्छ ^१ संज्ञा पुं॰ [सं॰]

१. जलप्राय देश । अनूप देश ।

२. नदी आदि के किनारे की भूमि । कछार । उ॰—सीतल मृदुल बालुका स्वच्छ । इत ये हरे हरे तृन कच्छ ।—नंद ग्रं॰, पृ॰ २६४ । (ख) आवहु बैठहु भोजन करें । इत ये बच्छ कच्छ में चरैं ।—नंद ग्रं॰, पृ॰ २७४ ।(ग) गिरि कंदर सरवरह सरित कच्छह घन गुच्छह ।—पृ॰ रा॰ ६ ।१०२ ।

३. [वि॰ कच्छी] गुजरात के समीप एक अंतरीप । कच्छभुज । उ॰—(क) कुकन कच्छ परोट थट्ट सिंधू सरभंगा ।—पृ॰ रा॰ १२ ।१३०, (ख) चारण कच्छ देसां जाति कच्छिला कहाया ।—शिखर॰, पृ॰ १०५ ।

४. कच्छ देश का घोडा़ ।

५. धोती का वह छोर जिसे दोनों टाँगों के बीच से निकालकर पीछे खोंस लेते हैं । लाँग ।

६. सिक्खों का जाँघिया जो पंच क्कार (कंघी, केश, कच्छ, कडा़ और कृपाण ) में गिना जाता है । मुहा॰—कच्छ की उखेड़ = कुश्ती का एक पेंच जिसमें पट पडे़ हुए को उलटते हैं । इसमें अपने बाएँ हाथ को विपक्षी के बाएँ बगल से ले जाकर उसकी गर्दन पर चढा़ते हैं और दाहिने हाथ को दोनों जाँघो में से ले जाकर उसके पेट के पास लँगोट को पकड़ते हैं और उखेड़ देते हुए गिरा देते हैं । इसका तोड यह है—अपनी जो टाँग प्रतिद्वंद्वी की ओर हो, उसे उसकी दूसरी टाँग में फँसाना अथवा झट घूमकर अपने खुले हाथ से खिलाडी की गर्दन दबाते हुए छलाँग मारकर गिराना ।

७. छप्प का एक भेद जिसमें ५३ गुरू, ४६ लघु, कुल ९९ वर्ण और १४२ मात्राएँ होती हां ।

८. तुन का पेड़ । उ॰—(क) राम प्रताप हुतासन कच्छ विपच्छ सभीर समीर दुलारो ।— तुलसी (शब्द॰) । (ख) हरी के अतिरिक्त बबूल, कच्छ की छाल, धावडा़ के पत्ते आदि उपयोगी चीजें यहाँ काफी पाई जाती हैं ।—शुक्ल॰ अभि॰ ग्रं॰ (विविध), पृ॰ १४ ।

कच्छ ^२ पु संज्ञा पुं॰ [सं॰ कच्छप] कछुआ । उ॰—नहिं तब मच्छ कच्छ बाराहा ।—कबीर श॰, पृ॰ १४९ ।