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प्रकाशितकोशों से अर्थ सम्पादन

शब्दसागर सम्पादन

उतार संज्ञा पुं॰ [सं॰ अव+√तृ, प्रा॰ उत्तार, हि॰ उतरना]

१. उतरने की क्रिया ।

२. क्रमशः नीचे की ओर प्रवृति । ढाल । जैसे, —पहाड़ का उतार । (शब्द॰) । य़ौ॰—उतार चढाव = ऊँचाई निचाई । उतार सुतार = गौं । सुबीता । मुहा॰—उतार चढाव बताना = (१)ऊँचा नीचा समझाना । (२) धोखा देना ।

३. उतरने योग्य स्थान । जैसे, (क) पहाड़ के उस तरफ उतार नहीं है, मत जाओ ।

४. किसी वस्तु की मोटाई या घेरे का क्रमशः कम होना । जैसे, इस छड़ी का चढ़ाव उतार बहुत अच्छा है । किसी क्रमशः बढ़ी हुई बस्तु का घटना । घटाव । कमी । जैसे नदी अब उतार पर है ।

६. नदी में हलकर पार करने योग्य स्थान । हिलान । जैसे— यहाँ उतार नहीँ है, और ओगे चलो ।

७. समुद्र का भाटा ।

८. दरी के करघे का पिछला बाँस जो बनुनेबाले से दूर और चढ़ाव के समानांतर होता है ।

९. उतारन । निकृष्ट । उ॰— अपत उतार, अपकार की अगार जग जाकी छाँई छुए सहमत ब्याध बाँध की ।—तुलसी ग्रं॰ पृ॰ २९३ ।

१०. उतारा । न्योछावर । सदका ।

११. परिहार । उस वस्तु का प्रयोग जिसमे विष आदि का दोष या ओर कोई प्रभाव दूर हो । जैसे, (क) हींग अफीम का उतार है । (ख) इस मंत्र का उतार क्या है ।

१२. वह अभि- चार जो अपने मंगल के लिये किसान करते है । इसमें वे एक दिन गाँव के बाहर रहते है ।

१३. कुश्ती का एक दाँव । उ॰—दस्ती, उतार, लोकान, पट, ढाक कालाजंग, घिस्से आदि दाँव चले ओर कटे ।—काले॰ पृ॰ ४१ ।